हरियाणा के मेवात में महिलाएं सामुदायिक रेडियो के जरिए अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं. वे घरेलू हिंसा, शिक्षा और मासिक धर्म से जुड़े मुद्दे पर बिना हिचक अपनी राय रख रही हैं. कुछ साल पहले तक मेवात में इसकी कल्पना तक असंभव थी.
राजधानी दिल्ली से 70-80 किलोमीटर की दूरी पर बसा हरियाणा का मेवात कई मायनों में आज भी पिछड़ा है लेकिन यहां एक सामुदायिक रेडियो गांव के लोगों में आत्मविश्वास की तरंगें भर रहा है. अल्फाज-ए-मेवात, यही नाम है उस सामुदायिक रेडियो का जिसने गांव के बच्चे, महिलाएं, बड़े और बूढ़ों के बीच सूचना की लौ जलाई है.
मेवात के नूंह जिले का घाघस गांव सूचना के मामले में कुछ साल पहले तक दुनिया से कटा था. मेवात एक मुस्लिम बहुल इलाका है जो काफी पिछड़ा हुआ है. कुछ साल पहले तक महिलाएं यहां घर पर भी बोलने से हिचकती थीं लेकिन वहीं औरतें अब रेडियो कार्यक्रम में लाइव बातचीत करती हैं, अपनी समस्या बताती हैं या फिर मन पसंद के गाने की फरमाइश करती हैं. कई बार तो महिलाएं और लड़कियां प्रोग्राम में शामिल होने के लिए रेडियो स्टेशन भी आती हैं.
रेडियो को लेकर थी आशंकाएं
2012 में जब रेडियो स्टेशन शुरू हुआ तो यहां गांव के लोगों में मिलीजुली प्रतिक्रिया थी. कई लोग इसके विरोध में थे, कोई कहता था कि ये जासूसी का अड्डा है तो कोई इसे बाहरी दखल बताता था.
अल्फाज-ए-मेवात रेडियो स्टेशन की स्थापना करने वाले सहगल फाउंडेशन के संचार विभाग की निदेशक पूजा मुरादा कहती हैं, “सामुदायिक रेडियो को स्थापित करने के दौरान हमें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. मेवात की अधिकतर आबादी मुस्लिम है, ऐसे में धार्मिक गुरुओं ने भी हमारी इस पहल का विरोध किया. उनकी मान्यता थी कि किसी भी तरह का मनोरंजन हराम है. समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो हर चीज में नकारात्मक पहलू ढूंढते हैं. हमारा भी ऐसे लोगों से सामना हुआ लेकिन हमने उन्हें भी अपनी मुहिम के साथ जोड़ा और उनकी सोच में बदलाव लाने की शुरुआत की.”
”रेडियो टॉवर से जासूसी”!
पूजा एक घटना को याद करती हैं, “जब शुरुआती दिनों में रेडियो स्टेशन का टेस्ट प्रसारण हो रहा था तो उस दौरान स्टेशन टॉवर के ऊपर लगी लाल बत्ती जलने पर कुछ लोग शोर मचाते हुए रेडियो स्टेशन पर आ धमके. उन्होंने कहा कि आप लोगों ने गांव की जासूसी के लिए कैमरे लगाए हैं, उग्र भीड़ ने स्टेशन परिसर को नुकसान पहुंचाने की धमकी दे डाली.”
इन देशों में गांव ही नहीं हैं
वह कहती हैं, “उस भीड़ में मेवात के एक मौलाना भी थे. स्टेशन में मौजूद कर्मचारियों ने मौलाना को ही स्टेशन के स्टूडियो में बिठा कर बातचीत शुरू कर दी. बातचीत में मौलाना ने लाल बत्ती को लेकर शंका जाहिर की. अल्फाज-ए-मेवात के कर्मचारियों ने साथ आए लोगों को मौलाना की बात रेडियो पर सुनाई और इस स्टेशन का उद्देश्य बताया. उन्हें विश्वास दिलाया कि यह उनकी भलाई के लिए न कि कोई जासूसी के लिए.”
पूजा कहती हैं कि वे ऐसे लोगों को साथ लाईं जो रेडियो के लिए संकुचित मानसिकता रखते थे, और उनकी सोच में बदलाव लाने कामयाब हुईं
गांव की बात, गांव का रेडियो
2012 में अल्फाज-ए-मेवात रेडियो की स्थापना से लेकर अब तक स्टेशन में तीस हजार के करीब फोन कॉल्स आ चुकी हैं. इन कॉल्स में बड़ा हिस्सा महिलाओं का भी हैं जो अपनी बात, अपने मुद्दे रखती हैं. हालांकि जब स्टेशन का प्रसारण शुरु हुआ तो छह महीने तक एक भी महिला कॉलर ने फोन नहीं किया.
महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए अल्फाज-ए-मेवात के सदस्यों ने एक रणनीति बनाई. इस रणनीति के तहत अगर कोई कॉलर किसी गाने की फरमाइश करता तो उसे कहा जाता कि घर की महिलाओं से यह गुजारिश करवाई जाए, तभी उनका पसंदीदा गाना बजाया जाएगा.
वक्त के साथ महिलाएं फोन पर पहले तो गाने की फरमाइश करती और बाद में अनेक मुद्दों पर धीरे-धीरे अपनी बात मुखर करती.
चलिए बेघर लोगों के गांव में
शिक्षा, स्वच्छता पर खुलकर बात
अल्फाज-ए-मेवात रेडियो स्टेशन के प्रभारी सोहराब खान के मुताबिक, “सामुदायिक रेडियो ने गांव में स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता और प्रसव से जुड़े मसलों पर ऐसे कार्यक्रम चलाए जिससे गांव वालों में जागरूकता बढ़ी है. आज अल्फाज-ए-मेवात को मेवात के 224 गांवों में सुना जाता है. रोजाना 13 घंटे रेडियो पर तरह-तरह के कार्यक्रम चलाए जाते हैं, जिससे गांव वालों को सूचना तो मिलती है साथ ही उन्हें उनके अधिकारों के बारे में भी सशक्त किया जाता है.”
2014 से अल्फाज-ए-मेवात रेडियो में जॉकी का काम करने वाली अनुराधा के मुताबिक, “मेवात की महिलाओं के साथ काम करना शुरू में बहुत कठिन था. शुरू में महिलाओं के अंदर अजीब सी झिझक थी. वे रिकॉर्डर के सामने बातें करने से बचती थीं. कोई सुनेगा तो क्या कहेगा, यह उनकी जुबान पर हमेशा रहता था. मैंने दोस्ती और भरोसा कायम करते हुए उनसे उनकी तकलीफें जानी और उसे रेडियो के जरिए समाज तक पहुंचाया.”
रेडियो पर महिलाओं की बात
पूजा बताती हैं कि मेवात की महिलाओं में आत्मविश्वास का स्तर गजब तरीके से बढ़ा हैं. वह कहती हैं, “जो महिलाएं कभी फोन पर आने से घबराती थीं, वहीं आज मुखर हो गईं हैं. रेडियो के जरिए उन्हें एक ऐसा मंच मिला जो शायद मेवात जैसे इलाके में पाना मुश्किल था. साथ ही हमारी टीम के सदस्यों को भी अच्छे मौके मिले हैं. अल्फाज-ए-मेवात में काम करने वाले कुछ लोग तो ऐसे थे जो कभी मेवात से बाहर नहीं गए थे लेकिन वही लोग आज हवाई यात्रा कर रहे हैं, दूसरे राज्यों में ट्रेनिंग देने जा रहे हैं.”
इस इलाके में रेडियो ने बहुत सारी जटिल समस्याओं का हल भी निकाला और गांव के लोगों को सही और गलत का चुनाव करना भी बताया. खुले में शौच, घरेलू हिंसा, लड़कियों की शिक्षा, मासिक धर्म, यौन शोषण जैसी गंभीर समस्याओं पर रेडियो कार्यक्रमों की सीरिज चलाई गई और गांववालों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक बनाया.
पूजा का कहना है कि मेवात में घरेलू हिंसा आम बात थी. मेवात में एक कहावत थी कि जब तक महिला को दो-चार चपत (थप्पड़) ना लगे दिन की शुरुआत नहीं होती. घरेलू हिंसा एक अपराध है इसे लेकर अल्फाज-ए-मेवात ने पुरुषों को साथ लाकर एक कार्यक्रम चलाया और महिलाओं को सवाल पूछने के लिए सशक्त बनाया. साथ ही साथ पुरुषों को यह अहसास दिलाया कि घरेलू हिंसा गलत है और महिलाओं के साथ पुरुषों का व्यवहार अच्छा होना चाहिए.
लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान की जरूरत
प्रशासन से जुड़े कामों के लिए भी अधिकारियों के साथ मिलकर कार्यक्रम चला गए, जिससे गांववालों ने अपने अटके कामों को लेकर फोन पर सवाल किया और उसे पूरा करने की प्रक्रिया के बारे में जाना. कानून से जुड़े मसले हों या पुलिस से जुड़े मुद्दे, इस रेडियो स्टेशन ने कार्यक्रमों के जरिए पुलिस और प्रशासन के बीच पुल बनने का काम किया.
गांव के किशोरों में शारीरिक बदलाव को लेकर भी अल्फाज-ए-मेवात ने कार्यक्रम बनाए. इसमें किशोरों की उलझनों को शामिल किया गया और उनकी समस्याओं को दूर करने की कोशिश की गई. लड़कियां अब अपनी बात घर पर बिना हिचक रख पाती हैं, सही और गलत के बीच का फर्क समझती हैं और अब आवाज बुलंद करती हैं.
हालांकि अनुराधा कहती हैं कि आज भी इस इलाके में शिक्षा व्यवस्था काफी खराब है और लड़कियों के लिए उच्च शिक्षा का इंतजाम नहीं है. आठवीं के बाद लड़कियों के सामने आगे पढ़ाई जारी रखने का संकट पैदा हो जाता है.
सोहराब का कहना है कि भले ही गांवों में दिल्ली के सबसे मशहूर रेडियो स्टेशन की पहुंच है लेकिन गांव के लोग अल्फाज-ए-मेवात को ही प्राथमिकता देते हैं. सोहराब कहते हैं कि मेवात को अल्फाज-ए-मेवात से बेहतर कोई और नहीं समझ सकता.