मुफीद खान
हरियाणा के सबसे पिछड़े जिलों में से एक नूह है, जहां 80 प्रतिशत आबादी मुस्लिम समुदाय से है। मेवात क्षेत्र के इस जिले के पुन्हाना ब्लॉक की ग्राम पंचायत रायपुर में केला देवी रहती हैं। उम्र के 42 वसंत देख चुकी केला देवी पंचायत के किसी अधिकारिक पद पर नहीं हैं लेकिन वह रायपुर पंचायत में अपने दम पर महिलाओं की बेहतरी के लिए काम करती हैं। राजस्थान के भरतपुर जिले के जूरहेडी गांव से केला देवी ने पांचवीं तक की पढ़ाई की है। विवाह के बाद से रायपुर में रहती हैं। अनुसूचित समुदाय के सात सदस्यों वाले उनके परिवार की आय का साधन दैनिक मजदूरी है। वह खुद मजदूरी करती हैं और उनके पति राज मिस्त्री का काम करते हैं। परिवार की मासिक आय 4000-5000 रुपये है। केला देवी अपने सभी बच्चों को शिक्षा दे रही हैं ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें और अपने गांव व देश के लिए कुछ कर सकें। केला देवी घूंघट नहीं करतीं। नूह और पुन्हाना में वह खेल प्रतियोगिता में भाग लेकर विजयी भी हो चुकी हैं। परिवार के बुज़ुर्गों को यह बात अच्छी नहीं लगी थी। केला ने महिलाओं को आगे बढ़ने से रोके जाने का विरोध किया? केला अपनी बेटियों को भी खेल-कूद में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने के लिए कहतीं हैं।
❝ नोटः ❞
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केला देवी अपने काम, अपनी बेबाकी और बेधड़क अंदाज के कारण गांव में अलग पहचान बना चुकी हैं। पिछले 10 वर्षों से वह न केवल औरतों की बेहतरी के लिए बल्कि नाबालिग बच्चियों की शादियों के खिलाफ और लड़कियों की शिक्षा के लिए काम कर रही हैं। गांव के सरपंच इकबाल ने कहाः केला देवी कमाल की महिला हैं। उनको अपना काम करने के लिए किसी सहारे की जरुरत नहीं, वह जिस काम को करना चाहती हैं उसे अपने बल पर करती हैं। केला देवी ने 2010 में पंच पद के लिए चुनाव में प्रतिभाग किया था पर जातीय समीकरणों के कारण नहीं जीत पाई। उसके बावजूद वह महिलाओं के लिए तथा अन्य मुद्दों पर लगातार काम कर रही हैं। उनके 3500 की आबादी वाले गांव के लिए केवल एक ही राशन डिपो है, और उसमें भी गांव वालों को राशन छह महीने में एक बार ही मिलता था। केला देवी ने इस समस्या के खिलाफ आवाज उठाई और राशन मिलने की प्रक्रिया को तेज किया। रायपुर के निवासियों के मुताबिक आज उनको हर दूसरे महीने राशन मिल जाता है।
❝ नाबालिग बच्चियों की शादी रोकने के लिए केला देवी ने अपने गांव में महिलाओं से बात की। गांव वालों के साथ मिलकर रैली भी निकाली। इस दौरान उन्होंने लोगों को कम आयु में शादी से होने वाले नुकसानों से भी अवगत कराया। केला देवी की कोशिशों के नतीजे में रायपुर में नाबालिग बच्चियों की शादी में कमी आई है। केला देवी इस समस्या को जड़ से खत्म करना चाहती हैं। ❞
इन दिनों केला देवी सरपंच के साथ मिलकर स्कूल में अध्यापकों की कमी को पूरा करवाने की दिशा में काम कर रही हैं। रायपुर में 8वीं तक का ही स्कूल है। केला देवी ने सरपंच से मिलकर यहां के स्कूल को 12वीं तक करवाने की पहल की। वह लोगों को मिलने वाले सरकारी लाभ पर नज़र रखती हैं। यदि कहीं किसी व्यवस्था में कोई गड़बड़ होती है तो वह तुरंत उस पर काम करती हैं। गांव की आंगनबाड़ी में काम नहीं होता था। केला देवी ने उसकी शिकायत करके आंगनबाड़ी को गांव के स्कूल में ही शिफ्ट करा दिया, अब उसमें काम होता है। स्कूल के प्रधानाचार्य व अध्यापक समय-समय पर आंगनबाड़ी के कामों का जायज़ा लेते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि वहां सब काम ठीक से होते रहें। रायपुर में मुस्लिम आबादी अधिक है। यहां अनुसूचित जाति और मुस्लिम परिवारों में लड़कियों की शिक्षा का स्तर बहुत ही कम है। यहां शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए केला देवी घर-घर जाकर बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए परिवार वालों से बात कती हैं।
पिछले चुनाव में भी वह पंच पद के लिए प्रतिभाग करना चाहती थीं लेकिन नई सरकारी नियमावली के कारण चुनाव नहीं लड़ सकीं। रायपुर पंचायत में यह परम्परा है कि गांव के लोग निर्विरोध अपना प्रतिनिधि चुन लेते हैं जिससे गांव का सौहार्द बना रहता है। इस परम्परा को पिछले साल भी बरकरार रखा गया था और गांव के लोगों ने पहले केला देवी का नाम पंच पद के लिए प्रस्तावित किया था, किन्तु उनके पास पांचवीं पास होने का प्रमाण-पत्र नहीं था इसलिए वह पंच के पद के लिए उपयुक्त नहीं रहीं। उन्होंने अपनी देवरानी का नाम पंचायत सदस्य के तौर पर दिया जिसको गांव वालों ने सम्मान देते हुए मान लिया और उनकी देवरानी गांव की चार महिला पंचों में से एक पंच बन गईं।
केला देवी कहती हैं कि सरकारी व्यवस्था को इससे कोई मतलब नहीं कि मैं पढ़ लिख सकती हूं या नहीं। उनको तो इसके लिए मेरे पढ़े लिखे होने का प्रमाण चाहिए। उनका प्रश्न है कि क्या यह कानून केवल पंचायत स्तर के लिए ही है या विधान सभा और संसद के लिए भी यही नियम लागू है। वह कहती हैं कि नियम सबके लिए बराबर होना चाहिए। केला देवी मानती हैं कि बिजली चोरी रोकने के लिए बिल पूरा जमा करवाना और अपराधियों को रोकने के लिए थाने से प्रमाण पत्र मांगना तो ठीक शर्तें हैं, मगर पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता की शर्त ठीक नहीं है। इसकी वजह से बहुत सी महिलाएं चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित हो रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की शिक्षा की स्थिति वैसे भी कोई बहुत अच्छी नहीं है।
बेटियों की शिक्षा में बहुत सी अड़चने आती हैं। केला देवी बताती हैं कि उनके पड़ोस में ही एक बच्ची की मां के गुजर जाने के बाद पिता ने बच्ची का स्कूल छुड़वा दिया। बच्ची दसवीं से आगे नहीं पढ़ सकी। मजबूरी या परिस्थितिवश ऐसा कई बार होता हैं कि लड़की पढ़ ही न पाती, लेकिन उसका असर पूरी जिंदगी में तरह-तरह से उसके सामने आता है और उसकी भूमिका कई क्षेत्रों से कटती जाती है। केला देवी इसकी जीती जागती मिसाल हैं जो शैक्षिक योग्यता न होने के कारण पंच का चुनाव नहीं लड़ सकीं। हरियाणा में केला देवी जैसी महिलाओं की एक बड़ी तादाद है जो शैक्षिक योग्यता न होने के कारण पंचायत चुनाव में प्रतिभाग करने से वंचित रह गईं। केला देवी कहती हैं– सरकार को पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता के नियम पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है।