sustainable rural development Archives - S M Sehgal Foundation https://www.smsfoundation.org/tag/sustainable-rural-development/ Sun, 16 Jul 2023 14:41:51 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.5 सोच से समझौता नहीं सवाल करो https://www.smsfoundation.org/%e0%a4%b8%e0%a5%8b%e0%a4%9a-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%9d%e0%a5%8c%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%82-%e0%a4%b8%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a4%b0/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%259a-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%259d%25e0%25a5%258c%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b2-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25b0 https://www.smsfoundation.org/%e0%a4%b8%e0%a5%8b%e0%a4%9a-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%9d%e0%a5%8c%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%82-%e0%a4%b8%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a4%b0/#respond Wed, 22 Feb 2017 08:11:54 +0000 https://www.smsfoundation.org/?p=1397 आरती मनचंदा ग्रोवर हाल ही में सामुदायिक रेडियो प्रशिक्षण कार्यक्रम में जाने के मौका मिला. बहुत कुछ सीखा और कईं बातें भूलने के मन भी किया. आखिर ऐसी कौन सी बातें हैं जिन्हें भूलने का मन किया? बात हो रही थी समानता और अधिकारों की और चर्चा हुई की किस तरह आज भी हमारे समाज … Continue reading "सोच से समझौता नहीं सवाल करो"

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आरती मनचंदा ग्रोवर

हाल ही में सामुदायिक रेडियो प्रशिक्षण कार्यक्रम में जाने के मौका मिला. बहुत कुछ सीखा और कईं बातें भूलने के मन भी किया. आखिर ऐसी कौन सी बातें हैं जिन्हें भूलने का मन किया? बात हो रही थी समानता और अधिकारों की और चर्चा हुई की किस तरह आज भी हमारे समाज में औरत का दर्जा पुरुष से नीचे है. हालाँकि यह बात कईं मायनों में बदल रही है, औरतें घर से बाहर निकल रही है, अपनी खुद की पहचान बना रही हैं पर क्या फिर भी क्या जो दिख रहा है वैसा ही हो रहा है? क्या हमारी सोच में कोई बदलाव आया? सारी बातें फिर सवाल बनकर सामने आ खड़ी हुई. रेडियो कार्यक्रम हो या हमारा दैनिक जीवन पित्रसत्तात्मक सोच हमारे दिलों दिमाग में इतनी धस चुकी है कि जाने अनजाने हम अपने कार्यों, ख्यालों और विचारों में इसी का प्रमाण देते हैं.

किसी भी ताकत वाले या सत्ता से जुड़े काम की बात आये तो सबसे पहली तस्वीर जो दिमाग में बनती है वह पुरुष की और जहाँ बात आए सहनशीलता और बेचारेपन की वहां एकाएक महिला आकर खड़ी हो जाती है. किसका बनाया हुआ है यह ढांचा, शायद चूक यह हुई की हमने कभी इसपर सवाल ही नहीं उठाया और साल दर साल, पीड़ी दर पीड़ी यही सोच आगे बढती गई. बड़ी ही तैयारी के साथ हमने इस सोच को सामाजिक नियमों, प्रथाओं, और सांस्कृतिक लोकाचार के रंगीले शब्दों से सजा दिया.

अगर हम किसी बदलाव की कल्पना करते हैं तो उसे सबसे पहले हमसे ही शुरू होना चाहिए. बचपन से बड़े होने तक हम इस लिंग आधारित भेदभाव को सुनते आए हैं और कब यह सुनी सुनाई बातें हमारी भी मानयता बन गयी पता ही नहीं चला, मानो दबे पाव हमारे ज़हन में घर कर लिया हो और हम कब इसे ही सच समझ बैठे पता ही नहीं चला. पर जब सीखने का मौका मिला और गहराई से चीज़ों को जाना तो पता चला की यह सब इस समाज के देन है, इसमें कुदरत का कोई हाथ नहीं. कुदरत ने तो भेद बनाया था पर हम सब उसे भेद भाव बना बैठे. खुद अपने अनुभव से कहूं तो इस भेदभाव पर सवाल उठाने का अब ज्यादा मन इसीलिए भी करता है क्यूंकि मैं एक दो साल की बच्ची की माँ हूँ. मैं नहीं चाहती की जिन मानयताओं के साथ मैं बड़ी हुई, उन्ही के साथ मेरी बेटी भी बड़ी हो. वो न ही अपनी सुरक्षा, अपने फैसले खुद ले सके, बल्कि हर सामाजिक भेदभाव पर सवाल उठाने में सक्षम हो क्यूंकि सवाल उठाने से ही संवाद शुरू होता है और आगे चलकर वही बदलाव की राह बनता है.

समाज हम सभी से है तो क्यूँ ना एक शुरुआत करके देखी जाए. उदहारण के लिए एक दम्पति का पहला लड़का हुआ और उन्होंने चाहा की वो अब और बच्चे नहीं चाहते, उनका यह निर्णय स्वीकार बनस्पत उनके जिनकी बेटी है. क्या एक बेटी के साथ परिवार पूरा नहीं? लड़के रोते नहीं या क्यूँ लड़कियों की तरह रो रहे हो, ऐसी बातें जो हम बचपन से सुनते हैं कहीं न कहीं हमारी सोच का हिस्सा बन जाती हैं और हम इंसानियत को पीछे छोड़ते हुए बस इस सोच के आगे नतमस्तक, इसी को सही ठहराने की कोशिश में कईं रिश्ते नातों को दाव पर लगा देते हैं.

एक न्यायिक समाज की रचना शुरू करने के लिए हम सब की भागीदारी की ज़रुरत है क्यूंकि बराबरी कभी तकलीफ नहीं लाती, लाती है तो सिर्फ सम्मान और सोहार्द. जैसे की कमला भसीन जी कहती हैं ताकत से मोहब्बत मत करो, मोहब्बत की ताकत को समझो. हम सब में जिस दिन प्यार की मर्दानगी आ गयी उस दिन राहें बहुत आसान हो जायेंगी.

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आज़ादी का उत्सव जारी है ! https://www.smsfoundation.org/%e0%a4%86%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%89%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b8%e0%a4%b5-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%b9%e0%a5%88/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2586%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25bc%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a6%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2589%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25b5-%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2588 https://www.smsfoundation.org/%e0%a4%86%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%89%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b8%e0%a4%b5-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%b9%e0%a5%88/#respond Tue, 23 Aug 2016 11:11:47 +0000 https://www.smsfoundation.org/?p=1427 सोनिया चोपड़ा आज़ादी का उत्सव हम सबके लिए ख़ास है. इस साल भारत ने आजादी के 69 वर्ष पूरे कर 70वें साल में कदम रखा है| पूरे हिंदुस्तान में इस खास राष्ट्रीय पर्व को अलग- अलग रंग और अंदाज़ के साथ मनाया गया. इस अवसर को खास बनाने के लिए 10 अगस्त 2016 को सामुदायिक … Continue reading "आज़ादी का उत्सव जारी है !"

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सोनिया चोपड़ा

आज़ादी का उत्सव हम सबके लिए ख़ास है. इस साल भारत ने आजादी के 69 वर्ष पूरे कर 70वें साल में कदम रखा है| पूरे हिंदुस्तान में इस खास राष्ट्रीय पर्व को अलग- अलग रंग और अंदाज़ के साथ मनाया गया.

इस अवसर को खास बनाने के लिए 10 अगस्त 2016 को सामुदायिक रेडियो अल्फाज़-ए-मेवात FM 107.8 ने पहली बार जश्न-ए-आज़ादी कवि सम्मेलन का आयोजन मेवात के गाँव घाघस (ब्लाक नगीना) के सामुदायिक केंद्र में किया.

यह कवि सम्मेलन दूसरे कवि सम्मेलनों से काफ़ी अलग था. आयोजक कवि सम्मेलन की तैयारियों में इतने मुशरूफ़ और उत्साहित थे कि नंगे पाँव ही स्टेज सजाने, दर्शकों के बैठने की व्यवस्था कर रहे थे. बड़ा-सा हाल गेंदे के फूलों से सजा था और कवियों के बैठने के लिए भी दूधिया सफ़ेद चादर से ढका एक भव्य मंच बनाया गया था. आइए कवि-उद्गारों से सजी इस महफिल में कोने की एक सीट तलाशते हैं और वाह-वाह -कर तथा ताली बजाकर कवि सम्मेलन का लुफ़्त उठाते हैं। कक्ष कवियों की कविताओं और मुशायरे को सुनने के लिए पूरी तरह से महिलाओं और पुरुषों से भरा था. सम्मलेन का पैमाना और विस्तृत हो जाता है जब दिल्ली, अलवर और पंचकुला से आये मेहमान भी इसमें शिरकत करते हैं.

निज़ामत और दर्शक ज़बरदस्त उत्साह और तालियों के साथ मेवात के कवि इलियास प्रधान, फौज़ी उसमान, मास्टर अशरफ, डॉ. अशफ़ाक आलम, डॉ. माजिद खान, शफ़ी मोहम्मद का स्वागत परंपरागत मेवाती पगड़ी पहनकर करते है और मुमताज़ शाजिद और मुमताज़ परवीन जैसी शायारओं को मेवाती चुनरी भेंट स्वरुप प्रदान की गयी.
कवि सम्मेलन का आगाज नियामत अली (मेवाती लोक गायक) ने देश भक्ति से ओतप्रोत गीत से किया. मुशायरे की निज़ामत अश्फाक आलम ने शयारा मुमताज़ शाजिद को बुलाकर की. शयारा मुमताज़ ने देशभक्ति और वीर रस में पिरोई कविता सुनाकर दर्शकों का मन मोह लिया.

मेवाती मशहूर शायरा मुमताज़ परवीन की इन चंद लाइनों की शायरी का अंदाज़ ही अलग था, जिसको सुनकर सभी में देशभक्ति की भावना का जज़्बा जगा दिया:-
हवा जब तक रहे दोस्ती रखना
हवा जब आंधी बन जाये तों बगावत भी ज़रूरी है,
पुरखों के समझोते को ही
इबादत समझ लिया,
उनसे भी कह दो अपनी
बात पर रहे,
मिट्टी नहीँ हम जो पानी में
बह जाये,
सैलाब से कह दो अपनी
औकत में रहे

इसी तरह सभी आमंत्रित कवियों ने कविताओं और शायरों के ज़रिये मेवात के वीर सेनानियों की आज़ादी की लडाई में भागेदारी और साहस से जुड़ी गाथाएँ सुनाई और साथ ही अपनी रचनाओं के माध्यम से जिम्मेदार अल्फाजों और विचारों की आज़ादी के प्रति भी समा बांधा.
देशभक्ति का जनून कुछ इस कदर जगा कि मुख्य अतिथि श्री नरेन्द्र सिंह, चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट, मेवात ने भी सरकारी कार्यक्रमों और स्कीमों के बारे में जानकारी कविता के ज़रिये कुछ इस तरह दी:-
खरीद फरोख्त या अत्याचार
का जो भो हो साथी,
हम सब मिलकर काम करे,
तों उनकी जेल लाजमी हो.

इस कवि सम्मेलन ने कक्ष में बैठे सभी लोगों को मेवात की संपन्न और विख्यात रचनाओं से रूबरू होने का मौका दिया और कवियों को एक ऐसा मंच दिया जहां वे अपनी कविताओं के ज़रिये आज़ादी के महत्व और उस आज़ादी को सजोने के प्रति हम सबकी जिम्मेदारियों का भी बखान कर रहे थे. हम सबका फ़र्ज़ है कि हम सभी मिलकर आज़ादी की अहमियत को समझे और अपने अधिकारों की मांग से पहले जिम्मेदारियों को निभाये.

दर्शक कवियों की कविताओं में इतने मंत्रमुग्ध थे कि उनको एहसास ही नहीं हुआ की कैसे 2 घंटे 45 मिनट का शायरना कवि सम्मलेन नियामत अली के देशभक्ति से भरे गीत और तालियों की जोशीली आवाज़ के साथ समाप्त हुआ.

ऐसा माना जाता है विचारों में बहुत ताकत होती है. जब विचारों को अल्फाजों के धागे में पिरोया जाए और शायराना अंदाज़ और जोशीले आवाज़ की माला बनाकर सुनाया जाये, तों वो हर सुनने वाले के दिलोदिमाग पर अपनी एक अनोखी और यादगार छाप छोड़ जाती है.

कवि सम्मेलन से वापिस आते समय मैं भी अपने साथ कवियों की कविताओं और शायरी की बहुत – सी यादे अपने साथ लेकर आयी हूँ. मैंने भी प्रण लिया कि मैं अपने कर्तव्यों को निभाने का आगाज आज से ही और अपने घर से ही सबसे पहले करुगी, क्योंकि मेरी यह पहल धीरे-धीरे मुझे बड़ी जिम्मेदारियों की तरफ़ लेकर जाएगी. ऐसी उम्मीद करती हूँ कि आप भी इस लेख को पढ़ने के बाद अपने जीवन में कोई नई सकारात्मक शुरूआत ज़रूर करेगें और इसी तरह ज़ारी रहेगा आज़ादी का जश्न, क्योंकि विचारों और अल्फाजों में बहुत ताकत होती है.
“जय हिन्द, जय भारत”!

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